हैरान हूँ मैं तेरी तिश्नगी पर
ये सोचकर की मैं दरिया बनू या समंदर
सोचा था झील बनूँगा और
तेरे ख़यालोमें रहा करूंगा
नीरवता का संगीत बनकर
तेरे कानोंको सजाऊँगा
पर झील तो यूँही सूख गयी
बहनेसे पहले तेरे मन की
प्यासी शोषक धरती पर
संगीत कहीं खो गया
तेरे ही मन के घूम में
तेरे सवाल सवाल ही रह गए
मेरी संगीन ख़ामोशी में | - VV
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